Saturday 7 June 2014

यूँ छोड़कर ना जा

ज़िन्दगी के इस मोड़ पर यूँ छोड़कर ना जा
इस बेरहम छोर पर मुँह मोड़कर ना जा
आज दिल-ओ-जाँ में हज़ार गम हैं
ये मेरी बेरुख़ी नहीं वक़्त का सितम है
माना हमारी तासीर मुख़्तलिफ़ है
पर बिन तेरे हर दम ख़लिश है
तासीर जो मुख़्तलिफ़ है तो क्या ?
मुख़ालफत तो हर मौसम में है
पर सर्द-ओ-गर्म मौसम के दरमियाँ
ही आती है बहार
चलती हैं रहमत की हवाऐं
और खिलते हैं समन
हर रंज भुलाकर तू
फिर हाथ थाम ले, ऐ बेख़बर!
इस बेरहम छोर पर मुँह मोड़कर ना जा
ज़िन्दगी के इस मोड़ पर तू छोड़कर ना जा

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